बीजेपी नेता की पीआईएल से बढ़ने वाली है सरकार की मुशीबत,फीस एक्ट को लेकर सरकार से मांगा जवाब,नोडल अधिकारी नियुक्त
देहरादून । प्राइवेट स्कूलों में 3 महीने की फीस माफ किये जाने और उत्तराखंड में फीस एक्ट लागू किए जाने सम्बन्धी भाजपा नेता कुंवर जपेंद्र सिंह की जनहित याचिका पर आज नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई । मामले पर सुनाई करते हुए कोर्ट ने प्रदेश सरकार को आज खूब खटघरे में खड़ा किया। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि तीन महीने की फीस माफ क्यों नहीं की गई जिस पर शिक्षा विभाग के द्वारा जवाब दिया गया कि प्रदेश में फीस एक्ट ना होने के कारण 3 महीने की फीस माफ नहीं की जा सकती है,कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को निर्देश दिए है कि वह अपने खर्चे और स्टॉफ की सैलरी स्वयं से वहन करे,ये तर्क की स्कूल के खर्चों और कर्मचारियों की सैलरी के लिए अभिभावकों से फीस ली जाए ये सही नही है। साथ की कोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन पढाई के नाम पर ली जा रही फीस को तय करने का अधिकार सरकार को नही है,ऑनलाइन पढाई के हिसाब से अभिभावक ही फीस तय कर सकते है। खास बात ये है कि कोर्ट ने पर्वतीय राज्य उत्तरखण्ड में नेटवर्किंग की समस्या को देखते हुए ऑनलाइन पढाई उपयोगी नही माना है। साथ ही कोर्ट ने लॉक डाउन पीरियड के दौरान 13 – 13 जिलों के मुख्यशिक्षा अधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाते हुए अभिभावकों की शिकायतों को सुनने और उनपर कार्रवाई करने के निर्देश दिए है,साथ ही 26 मई को होने वाली अगली सुनवाई में इसकी रिपार्ट कोर्ट के समक्ष रखने के भी निर्देश दिए है। एक और अहम और खास बात कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को लेकर ये कही है कि कोई भी प्राइवेट स्कूल फीस जमा करने के लिए फोन,ईमेल,वट्सप आदि के माध्यमो से फीस जमा करने के लिए अभिभावकों को मैसेज न भेजे। कोर्ट ने कहा है की फीस के नाम पर अभिभावकों का किसी भी तरह को शोषण नही किया जाएगा। एक और अहम बात कोर्ट ने सरकार से फीस एक्ट को लेकर पूछी है कि सरकार ने फीस एक्ट लागू क्यों नहीं किया है,खास बात यह है कि इस मामले की सुनवाई डबल बेंच में चल रही है जिसको नैनीताल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश रंगनाथन जस्टिस आरसी खुल्बे सुन रहे है। जिस तरह से अभी तक कोर्ट ने दो सुनवाइयां की है और दोनों सुवाईयों के दिन सरकार से सवाल जवाब किए गए है,उससे लगता है कि कोर्ट में सरकार के लिए चुनौतियां कम नही है । कुल मिलाकर देखें तो उत्तराखंड में फीस एक्ट न होने की वजह से अभिभावकों की जेब पर प्राइवेट स्कूल हर साल डाका डालने का काम करते हैं और फीस बढ़ोत्तरी कर अभिभावकों की चिंताएं बढ़ाते हैं। ऐसे में देखना ही होगा कि अब जब मामला कोर्ट में फीस एक्ट लागू करने को लेकर भी सुना तो कोर्ट इस पूरे मामले में क्या कुछ निर्णय देता है ।