सम्पादकीय

भागलपुर का पुल

जब हादसा होता है, तो कुछ दिन तक मीडिया में उसकी चर्चा रहती है और लोग भी उस पर बातें करते हैं। हर ऐसी बड़ी घटना पर जांच का एलान किया जाता है। फिर धीरे-धीरे सब कुछ ‘सामान्य’ हो जाता है। बिहार के भागलपुर में गंगा नदी पर बन रहे पुल के गिरने का वीडियो दुनिया भर में चर्चित हुआ है। चूंकि ऐसे विजुअल कम ही मिलते हैं, इसलिए मेनस्ट्रीम से लेकर सोशल मीडिया तक पर लोगों ने इसे खूब देखा। और चूंकि यह घटना ओडिशा के बालासोर में हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना से बने माहौल के बीच हुई, तो इसे भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर की असल हालत की कहानी के हिस्से के रूप में सहज ही पेश किया गया। चूंकि उसी जगह पर बन रहा पुल दूसरी बार गिरा है, तो उससे इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण में जुड़े भ्रष्टाचार का नैरेटिव भी लोगों के गले उतर गया। गौरतलब यह है कि भारत के लिए ना तो ट्रेनों का पटरी से उतरना कोई असामान्य घटना है, ना निर्माणाधीन या बन चुके पुलों का गिरना। अभी कुछ महीने ही हुए हैं, जब गुजरात के मोरवी में पुल गिरने की जानलेवा घटना हुई थी। ऐसी घटनाओं के एक साथ एक सामान्य बात यह भी है कि जब हादसा होता है, तो कुछ दिन तक मीडिया में उसकी चर्चा रहती है और लोग भी उस पर बातें करते हैं।

हर ऐसी बड़ी घटना पर जांच का एलान किया जाता है। फिर धीरे-धीरे सब कुछ ‘सामान्य’  हो जाता है और किसी को इस बात की फिक्र नहीं रहती कि उस जांच का क्या हुआ? क्या दुर्घटना के लिए किसी की जवाबदेही तय हुई और जिन्हें जवाबदेह पाया गया, उन्हें क्या दंड मिला। वैसे भी बात सिर्फ प्रत्यक्ष जवाबदेही की नहीं है। जवाबदेही तो उन सबकी बननी चाहिए, जो उन निर्माण संबंधी निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा रहे हों। लेकिन यह अपने देश में बहुत बड़ी बात है। बहरहाल, चूंकि कभी जवाबदेही तय नहीं होती, तो हर हादसे के बाद निर्णय और निर्माण की प्रक्रियाएं यथावत चलती रहती हैँ। और इस तरह अगले हादसे की जमीन तैयार होती रहती है। भारत के विकास की राह में यह बाधा दशकों से रही है, जो बदस्तूर जारी है। यहां यह जरूर याद रखना चाहिए कि जहां बालासोर में सैकड़ों जिंदगियां तबाह हुई हैं, वहीं भागलपुर में 1800 करोड़ रुपए की बलि चढ़ गई है। ऐसे नुकसान को क्या कोई जिम्मेदार देश बर्दाश्त कर सकता है?

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