Monday, November 25, 2024
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उत्तराखंड सांस्कृति

उत्तराखंड संस्कृति के हीरे,हीरा सिंह राणा का निधन,उत्तराखंड में शोक की लहर,पढ़िए हीरदा का जीवन सफर

देहरादून । उत्तराखंड के लिए बेहद दुखद खबर है। उत्तराखंड लोक संस्कृति के पुरोद्धा, पहाड़ी लोक संगीत की शान माने जाने वाले सुप्रसिद्ध लोक कलाकार एवं गढ़वाली-कुमाऊँनी-जौनसारी” भाषा अकादमी दिल्ली के पहले उपाध्यक्ष हीरा सिंह राणा का निधन हो गया है। 77 वर्ष की उम्र में हीरा सिंह राणा आज सबको को छोड़कर चले गए । दिल्ली स्थित विनोद नगर आवास में देर रात करीब 2:30 बजे अचानक दिल का दौरा पढ़ने से हीरा सिंह राणा स्वर्गवास हो गए। उनके देहांत की खबर फैलते ही उत्तराखंड में शोक की लहर दौड़ पड़ी है।

15 साल की उम्र से ही पहाड़ की संस्कृति का प्रचार प्रसार किया शुरू

आपको बतादें कि महज 15 साल की उम्र से पहाड़ की संस्कृति से जुड़कर लोक गीतों की रचना करने वाले हीरा सिंह राणा का नाम उत्तराँखण्ड के प्रमुख गायक कलाकारो में प्रथम पंक्ति में आता है। उन्हें लोग हीरदा कुमाऊनी के नाम से भी पुकारते हैं। हीरदा ने रामलीला, पारंपरिक लोक उत्सव, वैवाहिक कार्यक्रम से अपने गायन का सफ़र शुरू किया और बाद में आकाशवाणी नजीबाबाद, दिल्ली, लखनऊ ही नहीं अपितु देश-विदेश में भी अपनी बेहद सुरीली आवाज में पहाड़ी लोक गीतों की धाक जमाई है। जाने माने कवि, गीतकार एवं लोक गायक हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को मानिला डंढ़ोली जिला अल्मोड़ा में हुआ उनकी माताजी स्व: नारंगी देवी, पिताजी स्व: मोहन सिंह थे। हीरा सिंह राणा की प्राथमिक शिक्षा मानिला में हुई। उन्होंने दिल्ली में सेल्समैन की नौकरी की लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और इस नौकरी को छोड़कर वह संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता चले गए और संगीत के संसार में पहुँच गए।

इन कैसेट्स से बनाई दिलों में जगह

हीरा सिंह राणा ने उत्तराखंड के कलाकारों का दल नवयुवक केंद्र ताड़ीखेत 1974,  हिमांगन कला संगम दिल्ली 1992, पहले ज्योली बुरुंश (1971), मानिला डांडी 1985, मनख्यु पड़यौव में 1987, के साथ उत्तराखण्ड के लोक संगीत के लिए काम किया। इस बीच राणा जी ने  कुमाउनी लोक गीतों के 6- कैसेट ‘रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी’, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला’, ‘आहा रे ज़माना’ भी निकाले। राणा जी ने कुमाँउ संगीत को नई दिशा दी और ऊचाँई पर पहुँचाया। राणा ने ऐसे गाने बनाये जो उत्तराखण्ड की संस्कृति और रिती रीवाज को बखुबी दर्शाते हैं। यही वजह कि भूमंडलीकरण के इस दौर में हीरा सिंह राणा के गीत  खूब गाए बजाए जाते हैं। वर्ष 2011 में हमारी संस्था “उत्तराखण्ड सांस्कृतिक समिति” ने हीरा सिंह राणा को एक सांस्कृतिक संध्या में ग्रेटर नोएडा में आमंत्रित किया था और राणा जी ने अपने सुपरहिट गीत रंगीली बिंदी, घाघर काई—हाई रे मिजाता से पूरे ग्रेटर नोएडा शहर को झूमने पर मजबूर कर दिया था.

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