बोर्ड परीक्षाओं से ठीक पहले शिक्षकों के प्रशिक्षण पर उठे सवाल,रोक लगाने की उठी मांग
देहरादून। शिक्षक अंकित जोशी के द्वारा बोर्ड परीक्षाओं के मध्य शिक्षकों की प्रशिक्षण कराए जाने को लेकर बड़ा सवाल खड़ा किया गया है अंकित जोशी का कहना है कि विद्यालयी शिक्षा उत्तराखण्ड के विभागीय अधिकारियों और नीति नियंताओं को शिक्षा विभाग की आत्मा अर्थात कक्षा-कक्ष शिक्षण की महत्ता समझनी चाहिए । यह समय छात्र-छात्राओं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी को मजबूती प्रदान करने तथा पुनरावृत्ति करवाने के लिए सबसे अहम होता है ।इस समय बच्चों को अपने विषयाध्यापकों की सर्वाधिक आवश्यकता होती है । ऐसे समय में यह प्रशिक्षण पठन-पाठन में बाधक सिद्ध होते हैं । विभागीय प्रशिक्षणों की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इनमें मास्टर ट्रेनर बनाने के मानक तक विभाग आज तक तय नहीं कर पाया । राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखण्ड तथा जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों को इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों को बोर्ड परीक्षा के दृष्टिगत विद्यालयों से बाहर रखने वाले कार्यक्रम जनवरी-फरवरी माह में नहीं रखने चाहिए । बोर्ड परीक्षा का परिणाम आने पर जहां केवल शिक्षक को दोषी मान कर विभागीय अधिकारी शिक्षक का वेतन रोकने तक की कार्यवाही करते हैं वहीं परीक्षा परिणाम सुधारने के लिए भी विभागीय अधिकारियों को शिक्षकों को प्रोत्साहित करना चाहिए । बोर्ड परीक्षा से ठीक पहले ऐसे प्रशिक्षणों के लिए शिक्षकों को विद्यालय से बाहर रखना जिनका कोई आउटकम और औचित्य नहीं, बच्चों के लिए हितकारी नहीं कहा जा सकता है । विभाग द्वारा इन प्रशिक्षणों के लिए ठोस योजना तैयार नहीं की जाती है ।प्रायः पाया जाता है कि अधिकतर प्रशिक्षणों में कनिष्ठ विषयाध्यापक, वरिष्ठ विषयाध्यापक को प्रशिक्षित करता है । विभाग आज तक ऐसे मानक नहीं बना पाया कि प्रशिक्षक कौन होगा और प्रशिक्षु कौन । हकीकत तो यह है कि योग्यता को दर किनार करते हुए भाई-भतीजवाद के आधार पर एससीईआरटी, सीमैट और डायटों के द्वारा शिक्षकों /कार्मिकों को कार्यशालाओं में आमंत्रित किया जाता है और इस प्रकार विद्यालय के पठन-पाठन में समय की उपयोगिता तथा महत्ता को दरकिनार करते हुए ये संस्थान अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं ।