देहरादून में सीएम आवास से राजभवन तक दिखी फूलदेई पर्व की धूम,फूलदेई के पर्व पर छुट्टी घोषित करने की भी उठी मांग
देहरादून । पर्वतीय अंचलों में फूल-फूल माई / फूल देई त्यौहार मानव व प्रकृति के पारस्परिक संबंधों का ऋतु पर्व है । बीते वर्षों की भांति एक बार फिर से फूलदेई के अवसर पर आज राजधानी देहारादून में शशि भूषण मैठाणी द्वारा बीते सत्रह वर्षों से जारी ‘रंगोली आंदोलन’ की रचनात्मक मूहीम के तहत इस हिमालयी पावन ऋतु पर्व को नौनिहालों ने बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया ।
■ राज्यपाल ने किया अपने द्वार पर नौनिहालों का स्वागत :
सबसे पहले बच्चों की सामूहिक टोली राज्यपाल के द्वार पर पहुंची जहां उन्होने राजभवन के द्वार पर एक साथ मिलकर रंग बिरंगे फूलों की बरसात की । महामहीम भी पर्वतीय परंपरानुसार तय वक़्त पर अपने द्वार पर बच्चों के स्वागत के लिए खड़ी थीं । इस बीच सभी बच्चे द्वार पर फूल बरसाते हुए ‘फूल-फूल माई दाल द्ये चावल द्ये खूब खूब खाजा’ गाते रहे । परम्परानुसार बच्चे यह तब तक गाते हैं, जब तक उन्हें गृह स्वामी की ओर से उपहार स्वरूप कुछ भेंट मे नहीं मिल जाता है ।
आज फूलदेई पर्व पर रंगोली आन्दोलन के तत्वावधान में देहरादून के अलग-अलग हिस्सों से आए 25 नौनिहालों ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री की देहरी पर फूल वर्षाकर पर्व का शुभारम्भ किया .
■ मुख्यमंत्री की देहरी पर बरसाए फूल :
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी मुहिम की सराहना की. मुख्यमंत्री श्री रावत स्वयं बच्चों के स्वागत के लिए अपने द्वार पर खड़े थे । उन्होंने परम्परानुसार बच्चों को अपने हाथ से एक एक मुट्ठी चावल व गेहूं भेंट मे दिया । तत्पश्चात नौनिहालों को गिफ्ट पैकेट भी दिए । मुख्यमंत्री ने कहा इस भव्य संस्कृति को बचाया जाना बहुत जरुरी है । मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने रंगोली आंदोलन एवं यूथ आइकॉन क्रिएटिव फाउंडेशन के संस्थापक शशि भूषण मैठाणी के द्वारा लगातार कई वर्षों से किए जा रहे प्रयासों की जमकर सराहना भी की । मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि मैठाणी की इस मुहिम को डेढ़ दशक से अधिक का समय बीत गया और अब उसके परिणाम भी दिखने लगे हैं । मुख्यमंत्री ने कहा कि यह रंगोली आंदोलन की रचनात्मक मुहिम का ही नतीजा है कि जो अब उत्तराखंड का यह खूबसूरत बालपर्व देश के अन्य प्रांतों के अलावा विदेशों में दस्तक दे रहा है ।
■ पूर्व मुख्यमंत्री के आवास पर पहुंचे बच्चे :
फूलदेई पर्व मनाने निकली नौनिहालों की टीम ने मुख्यमंत्री आवास व राजभवन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आवास पर जाकर उनकी देहरी पर पुष्प बरसाए । पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भी बच्चों के स्वागत में पहले से ही अपनी देहरी पर खड़े थे । श्री रावत ने परम्परानुसार बच्चो को उपहार भेंट किये ।
■ माननीयों की देहरी के बाद आम घरों में भी बरसाए फूल :
राजभवन और मुख्यमंत्री आवास के बाद बच्चों की अलग अलग टोली कर्जन रोड , सर्कुलर रोड, बलबीर रोड, धर्मपुर , करगी, पटेलनगर , गढ़ी कैंट, आदि क्षेत्रों के कई उन घरों में गए जहां नौनिहालों को आमंत्रित किया गया था । इस अवसर पर आचार्य विपिन जोशी बच्चों की टीम का नेतृत्व करते हुए उन्हें दिशानिर्देशित करते रहे ।
■ हर बार की तरह इस बार भी रोपे गए पौधे :
आयोजक शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि गोपेश्वर से आरंभ हुई फूलदेई संरक्षण की उनकी इस मुहीम ने 17 वर्ष पूरे कर लिए हैं, और आगे भी जारी रहेगी । देहरादून में 7 वर्ष पूर्व राज्यपाल और मुख्यमंत्री आवास से इस पर्व को मनाने की शुरुआत की गई थी, तब शुरुआत थी काफी दिक्कतें होती थी , लेकिन अब इस खूबसूरत पर्व को लेकर क्या आम और क्या खास सभी मे जबर्दस्त उत्साह देखने को मिल रहा है । सबका समर्थन मिलने लगा है । आगामी वर्षों में और अधिक व्यापकता दी जाएगी प्रत्येक मौहल्ले मे अलग-अलग टोली बनाकर बच्चों को घर-घर भेजा जाएगा । मैठाणी ने कहा कि मेरा संकल्प है कि मनुष्य और पर्यावरण से जुड़े खूबसूरत फूलदेई पर्व को राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर पर हर दहरम जाति वर्ग के बीच स्थापित करना । और अब वह दिन दूर नहीं जब ऐसा करने में सफलता मिलेगी । आज हिंदुस्तान के पांच राज्यों में फूलदेई स्थापित करने में सफलता मिल चुकी है । प्रवासी लोजी भी बढ़-चढ़कर मनाने लगे हैं।
उन्होंने बताया कि इस बार कोरोना संक्रमण के चलते महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश के फूलदेई कार्यक्रम स्थगित किये गए । जबकि दिल्ली में आयोजन हो रहा है जिसमे वह देहरादून के बाद स्वयं प्रतिभाग करने जा रहे हैं ।
■ मुख्यमंत्री और राज्यपाल को दिए ज्ञापन, हर वर्ष फूलदेई अवकाश की मांग :
आज मुख्यमंत्री व राज्यपाल को दिए अपने दिए अपने ज्ञापन के मार्फत समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी ने पूर्व के वर्षों की भांति पुनः यह मांग की है कि उनकी इस मुहीम के बाद कई संगठन भी इसके संरक्षण व संबर्धन के काम मे आगे आएंगे , लेकिन सरकार से विनम्र आग्रह है कि किसी भी आयोजक स्वयं सेवी संस्थावों या बच्चों की टोली को कभी भी रुपया / पैसा भेंट मे या आर्थिक मदद के तौर पर न दिया जाए । ऐसा करने से फिर यह मुहीम भी सिर्फ धन जुटाने का माध्यम बनकर रह जाएगी । मैठाणी ने कहा कि रंगोली आंदोलन उनकी एक सोच है जिसमें उन्हें हर तबके का साथ मिल रहा है । कहा कि रंगोली आंदोलन कोई एन जी ओ या संगठन नहीं है बल्कि यह आम लोगों के सहयोग से बनाया गया एक जनचेतना समूह है । मैठानी ने कहा कि आज के इस आयोजन पर मेरा महज 2200/- सो रुपया का खर्चा आया है , फूलदेई संरक्षण के लिए मुझे कभी सरकार या किसी प्रायोजक संस्था की मदद की कभी भी जरूरत नहीं होगी । कहा कि जिस तरह हम होली दिवाली स्वयं के संसाधनो से मनाते हैं इसी तरह यह पर्व भी मनाया जाना चाहिए । यह पैसों से नहीं बल्कि भावनाओं से संरक्षित होगा ।
■ प्रत्येक वर्ष घोषित हो फूलदेई अवकाश :
उन्होने कहा कि वह लगातार विगत वर्षों से राज्य सरकार से मांग कर रहे हैं कि फूलदेई पर्व के मौके पर हर वर्ष सरकारी अवकाश का प्रविधान हो और इसे एक सांस्कृतिक पर्व घोषित किया जाए । सरकार से अनुरोध किया गया है कि इसे राष्ट्रीय बाल फूलपर्व घोषित किया जाय । पर्वतांचल की यह अनूठी बाल पर्व की परम्परा जो मानव और प्रकृति के बीच के पारस्परिक सम्बन्धों का प्रतीक है वह वर्तमान मे अपनी पहचान खोता जा रहा है । अत: आज के फूल फूल माई / फूल देई के शुभअवसर पर इस पत्र के मार्फत अपने सभी सम्मानित मीडिया संस्थानों , मीडिया कर्मियों, संस्कृति कर्मियों सामाजिक चिंतकों से निवेदन है कि व इस सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पारम्परिक बाल पर्व के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु अपने स्तर से भी जोरदार पहल करें ।
मेरा सुझाव व मांग सरकार से यह भी है कि प्रत्येक वर्ष राज्य के सभी स्कूलों मे बच्चों को इस बालपर्व फूलदेई को मनाने के लिए प्रेरित किया जाय व इस परम्परा से संबन्धित लेख या कविताओं को नौनिहालों के पाठ्यक्रम मे भी शामिल किया जाय । और पुष्प एवं फलदार पौधों का वृक्षारोपण बड़े स्तर पर किए जाएं ।
अगर उत्तराखंड राज्य सरकार की ओर से इस विषय पर ठोस सकारात्मक पहल होती है तो, मै भी अपने स्तर से रंगोली आंदोलन की पूरी ऊर्जा से सरकार के साथ चलकर हर सम्भव सहयोग के लिए तत्पर रहूँगा, मुझे आज उम्मीद ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वाश है कि इस सामाजिक, लोक परंपरा, संस्कृति संरक्षण के क्षेत्र मे चलाई जा रही रंगोली आंदोलन की यह मुहीम राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के द्वार से चलकर अब राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के देहरी तक भी पहुंचेगी । आने वाले वर्षों मे यह बाल उत्सव राज्य मे ही नहीं अपितु देश और दुनियाँ के कोने कोने मे रहने वाले हमारे प्रवासी जन भी अपनाने लगेंगे ।
■ बच्चों के साथ मौजूद रहे :
फूलदेई पर्व संरक्षण अभियान में डॉक्टर आर. के. जैन, डॉक्टर महेश कुड़ियाल, वैष्णो देवी मंदिर से आचार्य विपिन जोशी, तनुश्री डिमरी मैठाणी, आरती शर्मा, बबीता शाह लोहनी, मनस्विनी मैठाणी, यशस्विनी मैठाणी, अरुण चमोली, अंशुल गैरोला, स्वस्तिक सेवा सोसायटी से सुनीता पांडेय, सोनला वर्मा आदि शामिल रहे ।
■ इन स्कूलों के बच्चों ने किया प्रतिभाग :
इस बार फ्लावर डेल स्कूल, दून वैली पब्लिक स्कूल, जॉर्ज पब्लिक स्कूल, केंद्रीय विद्यालय वीरपुर, सेंट थॉमस, मैपल बियर, दून इंटरनेशनल स्कूल, न्यू कल्चर एकेडमी, सेंट थॉमस कालेज, ग्रीन एकेडमी, यूरो किड्ज, ग्रीन लाईट स्कूल, मेजर के आर बाली पब्लिक स्कूल एवं मदर किड्ज स्कूल के बच्चों ने प्रतिभाग किया ।