शिक्षा विभाग से बड़ी खबर

लॉक डाउन के बीच प्राइवेट स्कूलों ने बनाया अभिभावकों को लूटने का प्लान,सरकार के बनाए नियम की उड़ा रहे है धज्जियां

देहरादून। कोरोना वायरस महामारी के बीच लाॅक डउान के चलते जहां उत्तराखंड में भी सभी शैक्षणिक संस्थान बंद है वहीं लाॅक डाउन के बीच उत्तराखंड के कई प्राइवेट स्कूलों ने उत्तराखंड सरकार के उस नियम का उल्लघंन शुरू कर दिया है,जिसको लेकर त्रिवेंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपाती है कि उन्होने उत्तराखंड के अभिभावकों को बड़ी सौगात देते हुए प्रदेश के सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकों को लागू कर दिया है। त्रिवेंद्र सरकार इसे अपने तीन साल की सबसे बड़ी उपब्धियों में भी मानती है,कि प्रदेश के सभी स्कूलों पर एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू करा दी है, ताकि अभिभवकों को सस्ती पुस्तके मिल सके । लेकिन लाॅक डाउन का फायदा उठाकर कुछ स्कूल एनसीइआरटी के पुस्त्कों को छोड़कर स्कूल बंद होने पर भी खिताब खरीदने का दबाव तो अभिभावकों पर बना ही रहे है,साथ ही एनसीइआरटी पुस्तकों को छोड़कर अभिभावकों से महंगे दामों वाली पुस्तके मंगाई जा रही है,जिससे अभिभावक खुद का ठगा मुहसूस कर रहे है । क्योंकि एक तरफ सरकार जहां अभिभवकों की हितौषी बन रही है, वहीं दूसरी तरह स्कूलों पर इसका रति भर भी असर नहीं पड रहा है। वो भी ऐसे प्राइवेट स्कूल है जिनकी मान्यता उत्तराखंड बोर्ड से है। ऋ़षिकेश के कई स्कूलों ने इस तरह कमाई का खेल शूुरू कर दिया है। साथ की कक्षा एक की पुस्तकों की लिष्ट हम आपको नीचे दिए गए फोटों में दिखा रहे है,जिसमें आप देख सकते है कि किस तरह लम्बी चैड़ी लिष्ट कक्षा एक के लिए स्कूल संचालकों ने दी है। यदि एक साथ कक्षा एक का छात्र उन किताबों को लेकर चले तो वह किताबों के बोझ लते दब जाएं । वहीं आप देख सकते है कि दो चार किताबों को छोड़कर कैसे स्कूल संचालक सभी किताबें अन्य पब्लिकेशन की मांगा रहे है। ऐसे में सवाल ये उठाता है कि प्राइवेट स्कूल उत्तराखंड सरकार के नियमों को क्यों नहीं मानते है,जो सरकार ने बनाया है कि सभी स्कूल एनसीइआरटी की पुस्तकों को ही अपने स्कूलों में चलाएंगे।ऐसे साफ माना जा सकता है कि सरकार कुछ भी नियम बना ले प्राइवेट स्कूल संचालकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला। ऐसे में देखने वाली बात यह है कि क्या शिक्षा मंत्री के साथ  शिक्षा विभाग  और खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री इसका संज्ञान लेते हैं और ऐसे फूलों पर  कार्यवाही  करते हैं या नहीं  जो सीधे तौर से  उत्तराखंड सरकार के बनाए नियम का अनुपालन ही नहीं  घोर  विरोध भी कर रहे हैं ।

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