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स्मार्ट सिटी में निरंकुश ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर कांग्रेस मीडिया प्रभारी ने कसा स्मार्ट तरीके से तंज,पर्याप्त पार्किंग व्यवस्था की उठायी आवाज

देहरादून। आजादी के अमृत महोत्सव पर स्मार्ट सिटी में शामिल देहरादून की यातायात व्यवस्था ने नागरिकों को बुरी तरह हताश, निराश और मायूस किया। यह जश्न में डूबे लोगों को हुई इस तरह की अनुभूति जैसा रहा, जैसे भांति भांति के स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ परोसे गए भोजन में मानो जानबूझ कर कंकर डाल दिया गया हो। शहर तो स्मार्ट तो नहीं बन पाया किंतु यातायात पुलिस स्मार्ट जरूर हो गई। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो बिना पार्किंग वाले शहर में यातायात पुलिस की स्मार्टनेस के सिवा कुछ नहीं है। आपकी गाड़ी कब लॉक हो जाए, कहीं भी और कभी भी नो पार्किंग के बहाने आपकी गाड़ी उठा ली जाए, कोई भरोसा नहीं है। चाहे आप एक मिनट के लिए ही गाड़ी पार्क कर किसी दुकान, प्रतिष्ठान या सरकारी – गैर सरकारी दफ्तर ही क्यों न गए हों। आपको स्मार्ट सिटी में होने की कीमत कम से कम पांच सौ रुपए जुर्माने के साथ चुकानी पड़ सकती है। रोजाना दसियों लोग इस पीड़ा से गुजर रहे हैं। जरूरी नहीं कि कहीं नो पार्किंग का बोर्ड लगा हो और आपने अनजाने में गाड़ी वहां पार्क कर दी। वैसे तो नो पार्किंग कुछ खास जगहों पर ही है और स्थानीय प्रशासन द्वारा पार्किंग की भी सीमित व्यवस्था ही की गई है, यातायात पुलिस को इस जमीनी हकीकत से कोई लेना देना नहीं है और न ही लोगों की समस्या के प्रति संवेदनशीलता ही है। उसके हाथ में डंडा है और आम आदमी की पीठ। बस यही स्मार्ट सिटी का पैमाना है। सड़कों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। देहरादून की सड़कें देख कर तो कहीं से यह आभास नहीं होता कि यह स्मार्ट सिटी का पासंग भी हो किंतु ट्रैफिक पुलिस जरूर स्मार्ट है। कहना चाहिए कि सिर्फ और सिर्फ ट्रैफिक पुलिस ही स्मार्ट है।
प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राजीव महर्षि ने दून की ट्रैफिक व्यवस्था पर गहरी नाखुशी जाहिर की है। उन्होंने ट्रैफिक पुलिस की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में लेते हुए कहा है कि पहले तो स्पष्ट रूप से नो पार्किंग जोन घोषित किया जाना चाहिए। बाहर से आने वाले लोगों को देहरादून आने का दंड 500 रुपए जुर्माने के साथ न चुकाना पड़े, इसकी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए, साथ ही स्थानीय लोगों के हितों का ध्यान भी रखा जाना चाहिए। उन्होंने दो टूक कहा कि देहरादून में ट्रैफिक पुलिस इस कदर निरंकुश हो गई है कि उस पर किसी का नियंत्रण नहीं है। किसी की भी गाड़ी, कभी भी, कहीं से भी उठाई जा सकती है। आपकी आंखों के सामने यह हो सकता है लेकिन आम लोगों की बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है। घर से बाहर निकलना हो तो पांच सौ रुपए ट्रैफिक पुलिस के लिए लेकर चलना अनिवार्यता हो गया है। राजीव महर्षि ने कहा कि बिना प्रबंध किए ट्रैफिक पुलिस को जिस तरह निरंकुश बना दिया गया है, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता। शहर की सड़कें सिकुड़ती जा रही हैं, विस्तार की कहीं गुंजाइश नहीं है, ऐसे में चालानी कार्यवाही निसंदेह लोगों का शोषण है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।महर्षि नेकहा कि रोजाना उनके पास दर्जनों लोग ट्रैफिक पुलिस के अवांछित आचरण की शिकायतें लेकर लोग पहुंचते हैं। उन्होंने मांग की है कि शहर में पहले पार्किंग की ठोस व्यवस्था की जाए, उसके बाद ही ट्रैफिक पुलिस को डंडा थमाया जाए। उन्होंने कहा कि खुद मुख्यमंत्री को इस अव्यवस्था का संज्ञान लेकर ट्रैफिक पुलिस के पेंच कसने होंगे, अन्यथा उनके सुशासन के नारे पर हमेशा सवालिया निशान लगा रहेगा। उन्होंने कहा कि निरंकुश ट्रैफिक पुलिस देहरादून के प्रशासन पर बदनुमा दाग है और सरकार को इस दिशा में सबसे पहले सोचने की जरूरत है। केवल नारों से काम नहीं चलेगा। जमीन पर काम करना होगा और उसके लिए शहर में पर्याप्त पार्किंग की व्यवस्था करनी होगी, उसके बाद ही ट्रैफिक पुलिस को लोगों पर हाथ डालने की अनुमति दी जाए।

 

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