बद्रीनाथ धाम के कपाट की तिथि आगे बढ़ने से उलझन में हरीश रावत,रावल को समय से पहले न बुलाने पर पूछा सवाल
देहरादून । उत्तराखंड में 26 अप्रैल से शुरू हो रही चारधाम यात्रा को लेकर पहली बार ऐसे सवाल उठ रहे है जो कभी शायद ही पहले कभी उठे हो,जी हां ये सवाल बद्रीनाथ धाम की कपाट 30 अप्रैल की जगह 15 मई को खुलने को लेकर उठ रहे है,सरकार के द्वारा बद्रीनाथ धाम के रावल को 14 दिन का कोरोटाइन्ट किए जाने को लेकर धाम के कपाट आगे बढ़ाए जाने को लेकर चर्चा हुई जिसके बाद निर्णय लिया है गया कि बिना रावल की मौजूदगी में कपाट खोलना उचित नही है इसलिए तिथि को आगे बढ़ाये जाने पर विचार हुआ और कपाट की तिथि 30 अप्रैल की जगह 15 मई को खोले जाने का मूर्हत निकाला गया। तिथि आगे बढाने का निर्णय पर अब सवाल उठने लगे है,पूर्व कैबिनेट मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने इसे जहाँ न्याय संगत करार नही दिया है,वही पूर्व सीएम हरीश रावत इस निर्णय से उलझन में पड़ गए है,हरीश रावत ने इसको लेकर शोसल मी दिया में पोस्ट की है जो इस प्रकार है।
स्थान, घटनाओं, पूजा स्थलों व धार्मिक यात्राओं का महात्म्य, उनसे जुड़ी ऐतिहासिक आध्यात्मिक परंपराओं से है, ये परंपराएं असंभव सी चुनौतियों के आने पर ही बदली या संशोधित की जानी चाहिये। क्या कोरोना संक्रमण, ऐसी चुनौती है कि, #भगवान_बद्रीनाथ जी के कपाट खुलने की तिथि बदली जाय जबकि, भगवान #केदारनाथ जी के #कपाट यथा तिथि खोले जा रहे हैं, बात समझ में नहीं आ रही है। परंपराओं को शिथिल करना कपाट खुलने से जुड़ी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक महत्व का शरण तो नहीं करेगा और यदि #क्वारंटाइन का प्रश्न है, तो फिर आदरणीय #रावल जी को हमने पहले आमंत्रित क्यों नहीं किया? खैर #लॉकडाउन तक मैं, सरकार के निर्णयों से बधां हुआ हूँ, मगर इस निर्णय ने मुझे उलझन में डाल दिया है।
हरीश रावत की इस पोस्ट से साफ़ है हरीश रावत भी शायद इस निर्णय से वास्तव में सरकार के साथ नही है,क्योंकि हरीश रावत सरकार के साथ होते तो हरीश रावत या तो सरकार के निर्णय के साथ होने मई बात लिखते या पोस्ट ही नही लिखते,मगर हरीश रावत बद्रीनाथ धाम के कपाट की तिथि आगे खुलने की वजह से अगर उलझन में वास्तव में हरीश रावत के मन में कई ऐसे प्रश्न उठ रहे होंगे जो धार्मिक मान्यताओं को लेकर होंगे।