कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के विभाग में श्रमिकों के हक पर डाका,कर्मियों के पीएफ का पैंसा कम्पनी कर गयी हजम,विभाग बेखबर
देहरादून। पूरे देश में कोराना वायरस मामले के बाद लाॅक डाउन के चलते काम ठप होने की वजह से सबका ध्यान इन दिनों मजदूरों की तरफ है कि किस तरह काम न होने की वजह से मजदूर बेबश है। हालत यह है कि मजदूर अब उन शहारों को छेाड़कर जाने लगे है जिन शहरों में वह अपने परिवार और अपने लिए रोजी रोटी का गुजारा करते थे,बात अगर उत्तराखंड की करें तो उत्तराखंड में हालत मजदूरों के लिए विपरीत है। बाहारी प्रदेशों के मजदूर उत्तराखंड छोड़ने लगे है। वहीं प्रदेश के कई विभागों में सेवाएं दे रहे उत्तराखंड के वह श्रमिक भी परेशान है जिनहे कई महीनों से मेहनताना नहीं मिला है। लेकिन चैकाने वाला मामला लाॅक डाउन के दौरान उत्तराखंड के श्रममंत्री हरक सिंह रावत के विभाग से आया है। जी हां यू तो उत्तराखंड के श्रम मंत्री श्रमिकों के साथ खड़े होने का वादा प्रदेश के श्रमिकों से कर रहे है लेकिन श्रम मंत्री हरक सिंह रावत के पास ही मौजूद वन विभागा में इसकी हैरान करने वाली सच्चाई सामने आई है।
पीएफ का पैंसा कम्पनी कर गयी हजम
जी हां वन विभाग में उज्जवल लेबर कांट्रेक्टर कोआॅपरेटिव सोसाईटी के तहत 2000 कर्मी काम करते है। लेकिन उज्जवल लेबर कांट्रेक्टर कोआॅपरेटिव सोसाईटी वन विभाग में काम करने वाले इनही कर्मियों के पीएफ का पैंसे डकार गई है। वन विभाग में मौजूद सहायक गार्ड के रूप में काम कर रहे एक कर्मिक को जब लाॅक डाउन के दौरान पैंसे की जरूरत पड़ी और वह पीएफ का पैंसे निकालने पीएफ आॅफिस गया तो डिटेल पता करने पर उसे पता चला कि 2018 में कम्पनी के द्धारा केवल 9 महीने का तो 2019 में 7 महीने का पीएफ का पैंसा जमा हुआ है। बाकि पीएफ का पैंसा कम्पनी के द्धारा जमा किया ही नहीं गया जबकि बकाया कर्मिकों की सैलरी से उज्जवल लेबर कांट्रेक्टर कोआॅपरेटिव सोसाईटी पीएफ का पैंसा काट रही है। लाॅक डाउन के दौरान न तो कम्पनी के द्धारा कर्मिकों को वेतन दिया गया है और जब कर्मिक पीएम का पैंसा निकालना चाहते है तो वह कम्पनी के द्धारा जमा ही नही किया जाता है तो सोचिए ऐसे कर्मिकों के मन पर क्या गुजरती होगी जो दिन रात उन जंगलो में काम कर रहे है जिनमें खतारा कम नहीं है।
प्रमुख वन संरक्षक ने लिया मामले का संज्ञान
वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक जय राज से जब हमने इस सम्बंध में बात की तो उन्होने बताया कि कम्पनी को पीएफ का पैंसा जमा करना चाहिए और अगर ऐसा नहीे हो रहा है तो वह इस सम्बंध में बात करेंगे। वहीं जब हमने उज्जवल लेबर कांट्रेक्टर कोआॅपरेटिव सोसाईटी से बात की तो कम्पनी के द्धारा गोल – मोल जवाब दिया गया है और कहा है कि हम कुछ कर्मिकों का पीएम काटते है और कुछ का नहीं,लेकिन सवाल ये है जब उज्जवल लेबर कांट्रेक्टर कोआॅपरेटिव सोसाईटी कर्मिकों का साल में कुछ महीने का पीएफ जमा कर रही है और कुछ महीने का नहीं तो यह कोन से नियम में देश में आत है कि 12 महीने में से कम्पनी कुछ ही महीने का पीएफ जमा करे। ऐसे में देखना ये होगा कि आखिर वन विभाग के साथ वन विभाग के मुखिया हरक सिंह रावत इस मामले को लेकर क्या एक्शन लेते है,जब उज्जवल लेबर कांट्रेक्टर कोआॅपरेटिव सोसाईटी एक दो नहीं बल्कि कई कई सौ कर्मचारियों के पीएफ का पैंसा साल में कई महीने का डकार रही है।