सम्पादकीय

सवाल सुरक्षित यात्रा का

इस बीच कई ट्रेन दुर्घटनाएं ऐसी हुई हैं, जिनके लिए चरमराते बुनियादी ढांचे को जिम्मेदार ठहराया गया है। जाहिर है, इन हादसों के कारण ट्रेनों के रखरखाव और ट्रैक के नवीनीकरण पर खर्च किए जा रहे पैसे पर सवाल उठे हैं। ओडिशा के बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना ने फिर भारत में रेलवे सुरक्षा के मुद्दे पर ध्यान खींचा है। यह हादसा ऐसे समय में हुआ, जब भारत सरकार रेल यात्रा को कथित रूप से तेज और सुखद बनाने की कोशिश कर रही है। पिछले कुछ सालों से भारत सरकार ने रेल नेटवर्क में से एक में हाई-स्पीड- ऑटोमेटेड ट्रेनों को शुरू करके रेल आधुनिकीकरण को आगे बढ़ाने का दावा किया है। सरकार के घोषित लक्ष्यों में 2024 तक रेलवे का 100 फीसदी विद्युतीकरण करना और 2030 तक नेटवर्क को कार्बन न्यूट्रल बनाना शामिल है। लेकिन इसी बीच कई ट्रेन दुर्घटनाएं ऐसी हुई हैं, जिनके लिए चरमराते बुनियादी ढांचे को जिम्मेदार ठहराया गया है।

जाहिर है, इन हादसों के कारण ट्रेनों के रखरखाव और ट्रैक के नवीनीकरण पर खर्च किए जा रहे पैसे पर सवाल उठे हैं। भारतीय रेलवे को 13-14 लाख कर्मचारियों के साथ देश की जीवन रेखा माना जाता है। भारतीय ट्रेनों में प्रतिदिन लगभग सवा दो करोड़ लोग सफर करते हैं और रेलवे 30 लाख टन माल की ढुलाई करती है। लगभग 68,000 किलोमीटर के ब्रॉड-गेज नेटवर्क पर 21,000 से अधिक ट्रेनें दौड़ती हैं। मगर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) के एक आकलन के मुताबिक, 2017-18 से 2020-21 के बीच खराब ट्रैक रखरखाव, ओवरस्पीडिंग और मैकेनिकल फेलियर ट्रेनों के पटरी से उतरने के प्रमुख कारण रहे।

दिसंबर 2022 में संसद में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया कि इन दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण रेलवे पटरियों पर रखरखाव की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक ट्रैक नवीनीकरण के लिए फंड में कमी आई है और कई मामलों में इसका पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। रेलवे ने ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रॉटेक्शन सिस्टम ‘कवच’ पर 2012 में काम शुरू किया था। इसका पहला परीक्षण 2016 में किया गया था। 2022 में इसका लाइव डेमो दिखाया गया और इसे लॉन्च किया गया। लेकिन रेल नेटवर्क में अभी यह सिर्फ दो प्रतिशत हिस्से में कार्यरत है। तो साफ है कि हादसों का कारण ढांचागत कमजोरियां और भटकी प्राथमिकताएं हैं। जब तक ये मौजूद हैं, रेल यात्रा सुरक्षित नहीं हो सकेगी।

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