उत्तराखंड से बड़ी खबर

शिक्षकों को दुर्गम में रहने की सजा तो शिक्षा विभाग के अधिकारियों को सुगम में रहने का उपहार देते है डबल इंजन की सरकार,बीजेपी नेता के करीबी शिक्षा विभाग के अधिकारी पर मेहरबानी की तैयारी

देहरादून। उत्तराखंड शिक्षा विभाग में जहां शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय ने बेशक शिक्षकों के ट्रांसफर पोस्टिंग में सेटिंग गेटिंग के साथ भ्रष्टाचार पर 3 सालों  में लगाम लगाई हो,लेकिन शिक्षा विभाग में अधिकारिेयों के ताबदले सेटिंग गेटिंग के खेल पर शिक्षा मंत्री न तो लगाम ला पाए है और लगता है न ही शिक्षा मंत्री लगाम लगा पाएंग ऐसा लगता है। जी हां शिक्षा विभाग में अधिकारियों के तबादले तबादला कानून के उल्लंघन पर भी हो जाते है,और जिन अधिकारियों को देहरादून से अटूट प्रेम और मोह वह देहरादून छोड़ना नहीं चाहते है। शिक्षा मंत्री और डबल इंजन की सरकार उन अधिकारियों पर खूब कृपा बरपाएं हुए है। शिक्षा विभाग में कई ऐसे अधिकारी है जिन्हे पहाड़ में सेवा देने से नफरत ही नहीं बल्कि ये समझे की उन्हे पहाड़ी प्रदेश के छात्रों की चिंता ही नहीं सताती है ये कहे तो गलत नहीं होगा होगा। शिक्षा विभाग में कई ऐसे अधिकारी है जिनकी पोस्टिंग इस समय पहाड़ों में है लेकिन वह मौज देहरादून में काट रहे है। इनही में से संस्कृत शिक्षा निदेशालय में तैनात अधिकारियों का जमावड़ा है जिनके उपर पहाड़ की शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी है लेकिन वह वह जाते ही नही है।

एसबी जोशी काट रहे है मौज फिर भी चाहते है बड़ा पद

संस्कृत शिक्षा में संयुक्त निदेशक पर तैनात और बागेश्वर जिले के प्राचार्य पद की जिम्मेदारी निभा रहे एसबी जोशी अब शिक्षा निदेशालय में बड़े पद पर आने को लेकर पूरी फील्डिंग बिठा चुके हैं,जी हां हम यह तो नहीं कहते कि वह गलत कर रहे हैं लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि जिस बागेश्वर जिले के डाइट के प्राचार्य पद पर उनको जिम्मेदारी सौंपी गई थी,उस पद पर भी वह बेहतर जिम्मेदारी निभा लेते तो बेहतर होता,यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य कहें कि दुर्गम में तैनाती मिलने के बाद अधिकारी वहां काम ही नहीं करते या सरकारों की मेहरबानी कहे कि अधिकारियों से काम लेना सरकार को नहीं आता है ।एसबी जोशी भी उन्ही अधिकारियों में एक है जिन्हें बागेश्वर जिले के डायट का प्राचार्य तो बनाया गया लेकिन वह वहां जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे हैं। इतना ही नहीं एसबी जोशी का मन जब बागेश्वर में नहीं लगा तो उन्होंने एक ऐसा रास्ता देहरादून में जमे रहने का निकाला जिसे सरकार ने भी कबूल कर लिया । जी हां सरकार ने उन्हें संस्कृत शिक्षा में संयुक्त निदेशक के पद पर तैनाती दे दी । अब ऐसे में बागेश्वर जिले के डाइट प्राचार्य की भूमिका के साथ देहरादून में संस्कृत शिक्षा में संयुक्त निदेशक पद की भूमिका कैसे एसबी जोशी निभा रहे होंगे यह तो वही बेहतर जानते होंगे कि कब उनका एक पांव देहरादून में होता है और कब दूसरा पाँव बागेश्वर में होता है जो वह दोनों पदों की जिम्मेदारी बेहतर तरीके से निभा लेते हैं । कुछ महीने पहले हुए तबादले के बाद अब एसबी जोशी का मन दोनों पदों पर भी ऊब गया है, और अब वह शिक्षा निदेशालय में एक बड़े पद पर बैठने के लिए तैयारी कर चुके हैं। जिसकी फाइल शिक्षा मंत्री के पास पहुंचने वाली है ऐसे में देखना यह होगा कि आखिर शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे उनकी मन की मुराद पूरी करते हैं और उन्हें बागेश्वर डाइट के प्राचार्य पद और संयुक्त निदेशक संस्कृत शिक्षा पद से मुक्त करते हुए बड़े पद पर बिठाते हैं या नहीं । लेकिन सवाल इस बात का है कि जब तबादला एक्ट के तहत सरकार ने 3 साल एक पद पर काम करने की व्यवस्था बनाई हुई है तो क्यों अधिकारी 2 या 3 महीने या 6 महीने में ही सेटिंग गेटिंग का खेल खेल कर अपनी पोस्टिंग देहरादून करा देते हैं। सूत्रों की माने तो भाजपा के एक बड़े नेता की कृपा से एसबी जोशी का तबादला हर 6 महीने में इसलिए हो जाता है क्योंकि उनकी पकड़ भाजपा नेता से बड़ी अच्छी है जो इस समय सरकार में दायित्व धारी है। बताया जाता है कि एसबी जोशी शिक्षा विभाग के उन टॉप अधिकारियों में एक है जिन्होंने सुगम में ही सबसे ज्यादा सेवा दी है, और फिर भी शिक्षा विभाग को ये कही नजर नही आता है। कई शिक्षक तो ये भी कहते हैं कि शिक्षा मंत्री जी शिक्षकों के लिए सालों से दुर्गम की सेवा और अधिकारियों के लिए देहरादून की सेवा ही कहा न्याय है।

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