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गम्भीर बीमारी से ग्रस्त शिक्षकों के नहीं हुए ताबदले,तो फिर धारा 27 में किसके हो गए तबादले,बैक डेट में हुए तबादलों को लेकर कोर्ट जाने की धमकी

देहरादून। उत्तराखंड शिक्षा विभाग में धारा 27 के तहत तबादले की जाने की एक बाढ़ चार संहिता से पहले आ गई थी और आदेश आचार संहिता के बाद भी जारी हो है,वही धारा 27 में धामी सरकार सरकार यही दिखाने की कोशिश कर रही है कि गंभीर बीमारी से ग्रस्त और जरूरतमंद लोगों के ही ट्रांसफर आचार संहिता से पहले किए हैं। लेकिन एक मामला हम आपको ऐसा बताने जा रहे हैं जिसे यदि उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समक्ष भी रखा जाए तो वह भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आखिर धारा 27 में जब गंभीर बीमारी से ग्रस्त शिक्षकों के ट्रांसफर हो रहे हैं तो फिर शिक्षक प्रेम सिंह का ट्रांसफर क्यों नहीं हुआ जो राजकीय इंटर कॉलेज पोखरी टिहरी गढ़वाल में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य कर रहे हैं प्रेम सिंह को हार्ट की बीमारी है और 20% हार्ट ही उनका काम करता है जबकि उनको पेसमेकर भी हाथ में लगा हुआ है। इन सब के बावजूद वह कई सालों से धारा 27 के तहत ट्रांसफर के लिए आवेदन कर रहे हैं लेकिन उनका ट्रांसफर नहीं हो पाया है 21 सालों से प्रेम सिंह दुर्गम के स्कूलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं फिर भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों और उत्तराखंड शासन में बैठे अधिकारियों की उनकी बीमारी नहीं दिखाई देती है वह तब जब राज्य चिकित्सा परिषद उत्तराखंड उनको गंभीर बीमारी के तहत स्वास्थ्य परीक्षण प्रमाण पत्र भी जारी किया हुआ है 58 साल के प्रेम सिंह इसी आस में हर साल तबादला एक्ट के तहत धारा 27 में आवेदन करते हैं कि कभी तो सरकार की आंखें खुलेगी और उनको उस एक्ट के तहत ट्रांसफर मिलेगा । जिसकी पीठ भाजपा की सरकार थपथपाती आई है। लेकिन लगता है कि प्रेम सिंह कि आप इसलिए ट्रांसफर की धूमिल हो रही है,क्योंकि लगता है कि शिक्षा विभाग अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर ट्रांसफर कर रहा है। तभी शिक्षा विभाग को उनकी गम्भीर बीमारी उन्हें नहीं दिखती है। जबकि चाहितों शिक्षकों के ट्रांसफर डायटों में किए जा रहे हैं जो सफेदपोशओं के करीबी हैं। खास बात यह है कि जिस स्कूल में प्रेम सिंह प्रधानाचार्य के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं शिक्षा विभाग का एक आदेश और अपनी आंखों पर पट्टी बांधे हुए जारी कर देता है। ट्रांसफर के पात्र प्रेम सिंह का तो ट्रांसफर नहीं किया जाता है लेकिन उनकी जगह पदोन्नति पर आए एक और प्रधानाचार्य की नियुक्ति उनके स्कूल में उन्हीं के पद पर कर दी जाती है जो कि हैरान करने वाला है। उत्तराखंड शासन हो या फिर शिक्षा विभाग आखिर जीस विभाग की जिम्मेदारी उत्तराखंड के नैनीहालो के भविष्य को संवारने की है,क्या उसे यह भी नहीं पता कि जिस स्कूल में वह प्रधानाचार्य की नियुक्ति कर रहे हैं वहां पद पहले से ही भरा हुआ है। जबकि कई स्कूलों में प्रधानाचार्य के पद खाली हैं। कुल मिलाकर ट्रांसफर के जो आदेश हाल के दिनों में जारी हुए हैं उसे देखते हुए यही लगता है कि या तो यह आदेश हड़बड़ाहट में तैयार किए गए हैं, या फिर शिक्षा विभाग ने यह मान लिया है कि कुछ भी हो जिन शिक्षकों के लिए उन्हें निर्देश प्राप्त हुए हैं उन्हें वही पोस्टिंग कर दो। शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को आदेश करने के बावजूद जब उनसे सवाल किए जा रहे हैं तो उनका एक ही जवाब है कि उन्हें शासन से आदेश प्राप्त हुआ है। लेकिन जब शिक्षा विभाग के अधिकारी शासन को यह अवगत नहीं कराएंगे कि किस स्कूल में पद खाली नहीं है तो फिर उत्तराखंड शासन में बैठे अधिकारी भी इसी तरीके के आदेश जारी करेंगे।

बैक डेड में किए गए ट्रांसफर को लेकर जाएंगे कोर्ट

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी आचार संहिता लगने के बाद शिक्षा विभाग में बैक डेट में किए गए ट्रांसफर ओं को लेकर सवाल खड़े कर चुके हैं और निर्वाचन आयोग से वह इसकी शिकायत करने की बात करें वही प्रधानाचार्य प्रेम सिंह के भाई जितेंद्र सिंह का कहना है कि अगर उनके भाई को तबादला एक्ट के तहत ट्रांसफर किए जाने का न्याय नहीं मिला तो वह इसको लेकर कोर्ट जाएंगे और क्यों उनके भाई का ट्रांसफर नहीं किया गया इसको लेकर वह शिक्षा विभाग और सरकार के खिलाफ याचिका दायर करेंगे कि जब उनका भाई तबादला एक्ट के तहत ट्रांसफर के लिए पात्र हैं तो क्यों उनका ट्रांसफर नहीं किया गया। वह कोर्ट में इस बात को लेकर भी जांच की मांग करेंगे कि जब उत्तराखंड में आचार संहिता लग गई तो उसके बाद कैसे बैक डेट में आदेश जारी हो रहे हैं। इसको लेकर यदि शासन से लेकर शिक्षा विभाग मैं बैठे अधिकारियों के फोन की जांच की जाए और आदेश सर्कुलेट करने की डेट निकाली जाए तो साफ हो जाएगा कि बैक डेट में शिक्षा विभाग में ट्रांसफर हुए हैं। क्योंकि जो आदेश 7 जनवरी के दिखाए जा रहे हैं वह 7 जनवरी के बाद के है।

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