उत्तराखंड के एक युवा का खास लक्ष्य,छात्रों का जीवन संवारने के साथ,होमस्टे के माध्यम से अतिथि देवो भवः की भावना को कर रहा है साकार
देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा जिलों में भ्रमण के दौरान रात्रि प्रवास होमस्टे में किए जाने से जहां प्रदेश में होमस्टे को एक नई पहचान मिल रही है। और जो लोग वास्तव में पहाड़ों में रहकर होमस्टे चला रहे हैं,उनके लिए रोजगार के अवसर भी होमस्टे के माध्यम से पैदा हो रहे हैं। होमस्टे योजना प्रदेश सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है। जिसका उद्देश्य स्थानीय स्तर पर प्रदेशवासियों को स्वरोजगार से भी जोड़ना है, वहीं उत्तराखंड की संस्कृति की झलक अलग अलग तरीके से होमस्टे में देखने को मिलती है, तो वही उत्तराखंडी पकवानों की खुशबू होमस्टे के कांसेप्ट को चार चांद लगा देती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जिलों में रात्रि प्रवास के दौरान अब वीआईपी गेस्ट हाउसुओं की जगह होमस्टे में रात्रि प्रवास करते हैं। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है,कि आखिर होमस्टे को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी किस तरीके से खुद आगे बढ़ रहे हैं,वही आज हम एक ऐसे होमस्टे संचालक की कहानी आपको बताने जा रहे हैं, जिसने पहाड़ में रहकर ही होमस्टे के माध्यम से अपनी किस्मत बदलने का काम तो किया ही है,साथ ही कई और लोगों को भी होमस्टे के माध्यम से रोजगार देने का काम किया है।
पारस बिष्ट है पहाड़ के युवाओं के लिए रोल मॉडल
जी हां हम बात कर रहे हैं,पारस बिष्ट की जिन्होंने नैनीताल जिले के रामगढ़ में सनराइज नाम से होमस्टे खोला है। पारस बिष्ट की उम्र 24 साल और 4 साल पहले से ही वह होम स्टे शुरू कर चुके हैं, यानी कि जो एक कहावत पहाड़ में है कि पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती है,उस कहावत के विपरीत पारस बिष्ट ने खुद को साबित किया है,और रामगढ़ में होमस्टे संचालित करने के साथ ही छात्रों का जीवन संवारने का भी काम कर रहे हैं। दो कमरों के साथ पारस बिष्ट ने होमस्टे की शुरुआत की थी,और आज 5 कमरों के साथ वह अपना सफर बढ़ा चुके हैं। पारस बिष्ट का कहना है कि वह इस बात को लेकर काफी खुश हैं,कि वह पहाड़ में ही रहकर खुद आय कमा रहें हैं,साथ ही कुछ लोगों को उन्होंने रोजगार से भी जोड़ा है,पारस का कहना है कि रामगढ़ क्षेत्र में बहुत होमस्टे है,लेकिन उनके होमस्टे में देश,प्रदेश से नहीं विदेशों से भी लोग आकर रुकते हैं। उनके होमस्टे में पूरी तरीके से घर जैसा माहौल है,क्योंकि वह खुद अपने परिवार के साथ होमस्टे को आगे बढ़ा रहे हैं,होमस्टे को संचालित करने में उनके पिता और उनकी मां भी उनका हाथ बढ़ाती तो,वहीं कई लोगों को उन्होंने रोजगार से भी अपने साथ जोड़ा है। कोविड-19 के दौरान जब होटल व्यवसाय ठप पड़े हुए थे, तब उन्होंने अपने होमस्टे में वाईफाई की सुविधा प्रदान की जिसका नतीजा यह हुआ कि जो लोग वर्क फॉर्म होम करना चाहते थे,उन्होंने उनके होमस्टे की तरफ रूख किया और बेहतर इनकम उनकी कोविड-19 के भी समय हुई।
बच्चों का भविष्य भी संवार रहें है पारस बिष्ट
पहाड़ का पारस कई प्रतिभावों को धनी है,पहाड़ में रहकर पहाड़ जैसे हौसले पारस के है,इस बात का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है,कि पारस की दिनचर्या को आप समझे, तो लगेगा कि वास्तव में यह युवा पहाड़ के लिए बहुत कुछ करना चाहता है। होमस्टे संचालित करने के साथ ही पारस अपने ही स्कूल में छात्रों का जीवन संवारने का भी काम कर रहे हैं,सुबह-शाम जहां होमस्टे में ठहरने वाले मेहमानों की आवत भगत अतिथि देवो भवः के समान पारस करते हुए नजर आते हैं। तो वही दिन के समय वह अपने स्कूल में ही छात्रों को भी पढ़ाते हैं, यही नहीं शाम के समय कई बच्चों को ट्यूशन भी पारस पढ़ाते हैं, जबकि अपने वाहन से ही बच्चों को स्कूल लाने और घर छोड़ने काम भी पारस करते हैं,जिससे समझा जा सकता है,कि आखिर किस तरीके से मल्टीटैलेंट पारस के अंदर भरा पड़ा है। पारस का कहना है उन्होंने भी एमबीए टूरिज्म से किया हुआ है,और पढ़ाई के साथ-साथ उनका ख्वाब था कि वह कहीं बाहर जाकर बेहतर सैलरी के लिए नौकरी करें,लेकिन जब वह एमबीए टूरिज्म कर रहे थे, तो उसी समय उनके ख्याल में होमस्टे खोलने का विचार आया और उन्होंने प्रदेश से बाहर न जाकर पहाड़ में रहकर ही खुद का रोजगार शुरू करने की सोची, और आज वह अपने उस फैसले से खुश भी हैं कि पहाड़ में रहकर वह अच्छी कमाई कर रहे हैं।