आरक्षण की आंच से उत्तराखंड में हालात हो सकते है बेकाबू,सरकार के सामने आगे कुंआ पीछे खाई वाले हालात
देहरादून । उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार एक तरफ जहां 3 साल पूरे होने की जश्न मनाने की तैयारी कर रही है । वही दूसरी तरफ प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने को लेकर चल रहे आंदोलन की तपिश धीरे धीरे और गहरी हो रही है,सरकार भले ही अभी आंदोलन को हल्के मूड में ले रही हो,लेकिन जिस तरह खुद सरकार के कई विधायक जरनल ओबीसी मोर्चा के साथ खड़े होने का दम भर रहे है, और यहाँ तक कि अब कई पंचायत प्रतिनिधि भी खुल कर जरलन ओबीसी कर्मचारियों के पक्ष में खड़े नजर आ रहे है उससे लगता है कि उत्तराखंड में इस समय आरक्षण को लेकर बहुत पक रहा है जिससे सरकार अभी तक मुंह फेर हुए है
ऐसी रही स्थिति तो होंगी दिक्कतें
प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर त्रिवेंद्र सरकार के द्वारा कोर्ट का निर्णय आने के बाद कोई फैसला न लेने से जरनल ओबीसी मोर्चा के कर्मचारियों में ही नहीं, उत्तराखंड के कई जनप्रतिनिधियों में भी रोष है, और वह अपना रोष मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर व्यक्त कर रहे है। जरनल ओबीसी मोर्चा के कर्मचारी जहाँ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर उतर आए है वही कई कर्मचारी कर्मचारी कार्यबहिष्कार कर अपना विरोध भी दर्ज कर रहे है,लेकिन कई कर्मचारी संगठनों ने ऐलान कर दिया है कि यदि 16 मार्च तक उनकी मांगें पूरी नही होती है तो वह 16 मार्च से आम जनता से जुड़ी सेवाएं भी ठप्प कर हड़ताल पर चले जायेंगे,ऐसे में यदि स्वास्थ्य,बिजली,पानी,और रोडवेज की बसों जैसी सुविधाएं प्रदेश में ठप्प होती है तो प्रदेश में हालात बहुत हद तक खराब हो सकते है,या यूं कहें कि हड़ताल से प्रदेश में हाहाकार जैसी स्थिति उत्तपन्न हो सकती है तो गलत नही होगा ।
आंदोलन को खत्म करना सरकार के सामने बड़ी चुनौती
ऐसे में हर स्थिति से निपटने के लिए सरकार को जरूरी उपाय अपनाने होंगे जिससे आम जनता को दिक्कतों का सामना न करना पड़े साथ ही ऐसी कोई स्थिति न आ पड़े जिससे प्रदेश में हालात खराब हो सरकार को कर्मचारियों के साथ वार्ता कर बीच का रास्ता निकालना चाहिए,लेकिन बीच का रास्ता निकले कैसे सरकार को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है,क्योंकि हड़ताल पर गए कर्मचारियों की एक ही मांग है और वह वार्ता या आश्वासन से पुरी होने वाली नही है,यही वो वजह है जो सरकार के माथे पर बल डाले हुए है,ऐसे में सरकार से आर पार में मूड में आन्दोलन पर अडींग कर्मचारियों से सरकार कैसे निपटेगी इस पर पूरे उत्तराखंड के साथ पूरे देश की नजर लगी हुई है ।
आगे कुंआ पीछे खाई वाले हालात
उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार के सामने आरक्षण के मुद्दे पर फैसला लेना ठीक उसी तरह जैसे आगे कूदने पर कुएं में गिरने पड़ने जैसा है और पीछे हटने पर खाई में गिरने का डर रहता है,जी हाँ यदि सरकार प्रमोशन में आरक्षण को खत्म करने का निर्णय लेती है तो इस फैसले से जहाँ जरनल ओबीसी कर्मचारियों में खुशी देखने को मिलेगी वही sc-st के कर्मचारियों में रोष व्याप्त होगा और एससी एसटी के कर्मचारी भी सरकार के खिलाफ आंदोलन का रुख कर सकते हैं इसलिए सरकार के सामने फैसला लेने की मुश्किल चनौती है ।