उत्तराखंड शिक्षा विभाग में टकराव को लेकर बड़ी खबर,विभाग के दोहरे मापदंड को लेकर कोर्ट में जाने की धमकी,क्या शिक्षा मंत्री सुलझा पाएंगे विवाद ?

देहरादून। उत्तराखंड शिक्षा विभाग में आज हुए एक आदेश से जहां हलचल मची हुई है,वहीं अब शिक्षा विभाग के द्वारा दोहरे मापदंड को लेकर कोर्ट तक मामला ले जाने की बात कहीं जा रही है। दरअसल पर शिक्षा सचिव दीप्ति सिंह के द्वारा एक आदेश आज जारी किया गया है, जिसके तहत शैक्षणिक संवर्ग के अधिकारियों को प्रशासनिक संवर्ग के अतिरिक्त जिम्मेदारी से तत्काल कार्यमुक्त किए जाने की बात कही गई है। इस आदेश के जारी होने के बाद उन प्रधानाचार्य को झटका लगा है,जो इस समय प्रभारी खंड शिक्षा अधिकारी या उप शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी निभा रहे थे,इसी को लेकर प्रधानाचार्य एसोसिएशन ने मोर्चा खोल दिया है। प्रधानाचार्य एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह बिष्ट का कहना है कि द्वेषपूर्ण भाव से यह आदेश जारी किया गया है, जो न्याय उचित नहीं है। क्योंकि एक तरफ जहां यह आदेश जारी किया गया है,वहीं दूसरी तरफ ठीक इसी से संबंधित पहलू के तहत डायट में प्राचार्य और एससीआरटी में प्रशासनिक संवर्ग के जो अधिकारी जमे हुए हैं वह पूरी तरीके से नियमों के विपरीत है।

क्या कहता है नियम समझना है जरूरी

 प्रधानाचार्य एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र बिष्ट का कहना है कि डायट और एससीआरटी में प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों को 2013 में जारी शासनादेश के तहत नहीं रखा जा सकता है,क्योंकि 2013 में शासन के द्वारा डायट और एससीईआरटी में शिक्षा विभाग के प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों को पदों को समाप्त किया जा चुका है, लेकिन आज भी उत्तराखंड में शिक्षा संवर्ग के अधिकारी नियमों के विपरीत डायट और एससीआरटी के पदों पर जमे हुए,जिसका विरोध प्रधानाचार्य एसोसिएशन ने शुरू कर दिया। प्रधानाचार्य का कहना है कि यदि शिक्षा विभाग के द्वारा शिक्षा विभाग के प्रशासनिक अधिकारियों को डायट और एससीईआरटी से नहीं हटाया जाता है तो वह इसके खिलाफ कोर्ट मैं पहुंचेंगे।

क्या है टकराव की वजह

दरअसल अपर शिक्षा सचिव के द्वारा जो आदेश जारी किया गया है,उसके तहत शैक्षणिक संवर्ग यानी कि जो प्रधानाचार्य हैं,उनको प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों के पदों पर बने रहने का अधिकार एक तरफ से नहीं है,इसी को लेकर प्रधानाचार्य एसोसिएशन में रोष है,क्योंकि कई प्रधानाचार्य प्रशासनिक संवर्ग के पदों पर अपनी अतिरिक्त सेवाएं दे रहे थे। वजह शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार को लेकर शिक्षा विभाग के द्वारा यह कदम उठाया गया है, यह तर्क दिया गया है। लेकिन दूसरी तरफ का तर्क को भी समझिए, वह तर्क प्रधानाचार्य एसोसिएशन के साथ कई शिक्षाविद भी दे रहे हैं,कि जब शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार को लेकर इस तरीके का बड़ा निर्णय शिक्षा विभाग के द्वारा लिया गया है, तो फिर वास्तव में प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारी जो अकादमिक संस्थानों में कुंडली मारे बैठे उनका भी क्या काम उन पदों पर है,जिनकी जिम्मेदारी उनको नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि नियमों के तहत एससीआरटी और डायट में अकादमिक संवर्ग के ही लोगों को जिम्मेदारी मिलनी चाहिए, जिससे कि शैक्षणिक गुणवत्ता में और सुधार आ सकता है, क्योंकि शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार के पहलू को अकादमिक समझ रखने वाले ही बेहतर कर सकते हैं,लेकिन उत्तराखंड में तो प्रशासनिक संवर्ग की समझ रखने वाले अधिकारी अकादमी संस्थानों के पदों पर बैठे हैं, जिसका असर उत्तराखंड में यह हो रहा है कि शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार की वजह शैक्षणिक गुणवत्ता में उत्तराखंड नीचे की तरफ बढ़ रहा है। मामला भले ही शिक्षा विभाग के प्रशासनिक संवर्ग और शैक्षणिक संवर्ग की टकराव का है लेकिन नियम की तहत इसका समाधान हो ना भी जरूरी है जिसे कि वास्तव में शैक्षणिक गुणवत्ता कुछ सुधार आजा सके।

शिक्षा मंत्री के फैसले पर नजर

मामला आर पार तक की लड़ाई तक पहुंच गया है, क्योंकि प्रधानाचार्य एसोसिएशन के अध्यक्ष शिक्षा विभाग के दोहरे मापदंड को लेकर कोर्ट में जाने की धमकी दे चुके है, ऐसे में अब शिक्षा मंत्री धनसिंह रावत पूरे मामले में क्या कुछ रुख अपनाते हैं,यह देखना होगा, क्योंकि मामला शिक्षा मंत्री के संज्ञान में भी जरूर आएगा,लेकिन खुद ही शिक्षा मंत्री को इसका संज्ञान लेना भी चाहिए। क्योंकि 2013 के बाद जो शिक्षा मंत्री इसको नहीं सुलझा पाए हैं वह क्या शिक्षा मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत सुलझा पाएंगे यह देखना होगा।

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