शिक्षा विभाग में कुछ अधिकारियों को सेवा विस्तार दिए जाने की चर्चा,शिक्षक नेता अंकित जोशी ने उठाए विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल

देहरादून। राजकीय शिक्षक संघ एससीईआरटी शाखा के अध्यक्ष डॉ० अंकित जोशी के अनुसार उत्तराखंड के राजकीय विद्यालय आज की तिथि में प्रधानाचार्य विहीन, प्रधानाध्यापक विहीन, नियमित प्रवक्ता विहीन हो चुके हैं । ऐसा केवल इसलिए होता हैं क्योंकि विभागीय अधिकारी समय पर नियमानुसार निर्णय नहीं लेते और आज विभाग अधिकारियों के पक्ष में इतना बड़ा निर्णय लेने जा रहा है । यही निर्णय शिक्षकों व प्रधानाचार्यों और प्रधानाध्यापकों के लिये क्यों नहीं लिया गया ? पदोन्नति के पदों पर अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति भी आत्मघाती कदम साबित होगा कल जब विभाग चाहते हुए भी इन पदों पर नियुक्त अतिथि शिक्षकों को नियमित नहीं कर सकेगा तो यह इन युवाओं के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ होगा ।विभागीय अधिकारी वरिष्ठता में नियमों को सम्मान नहीं देते । मौलिक नियुक्ति की तिथि अर्थात् डेट ऑफ़ सब्सटेंटिव अपॉइंटमेंट से भी वरिष्ठता प्रदान करना उचित नहीं समझते और मामले को लंबित रखने के उद्देश्य से न्यायालय के जाते हैं । दूसरी ओर ऐसी तिथि से वरिष्ठता प्रदान करते हैं जिस तिथि को कार्मिक उस पद के लिए अर्ह ही नहीं था । ऐसे में एक आम शिक्षक पीड़ित महसूस नहीं करेगा तो क्या करेगा । वह न्यायपालिका की शरण में नहीं जाएगा तो कहाँ जायेगा ? जो विभाग शिक्षा के लिए शिक्षक, प्रधानाचार्य और प्रधानाध्यापक को महत्त्वपूर्ण नहीं समझता है उसे तुरंत यह समझ आ जाता है कि भविष्य में विभागीय अधिकारी अधिक संख्या में सेवानिवृत्त हो जाएंगे इसलिए इन्हें विशेष नियम के आधार पर सेवा विस्तार देना चाहिए, समझ से परे है। जो विभाग एक शैक्षिक सत्र में दो-दो बार धारा 27 के फॉर्म मँगवाता है और समय पर शासन नहीं भेज पाता है जिसे शासन यह बोलते हुए मना कर देता है कि अब सत्र समाप्त हो चुका है । स्थानांतरण एक्ट में अन्तरमण्डलीय शिक्षकों के स्थानांतरण हेतु धारा 27 के अतिरिक्त कोई प्रावधान न होने के बावजूद जब विभाग ऐसे शिक्षकों के प्रति उदासीन रहता है जो स्थानांतरण के लिए अपनी वरिष्ठता तक त्यागने को तैयार हैं, अचानक से ऐसा निष्ठुर तंत्र संवेदनशील हो जाता है और पत्रावली तैयार करने लगता है कि आख़िर कैसे कुछ अधिकारियों को सेवा विस्तार का प्रावधान तैयार किया जाए तो सवाल उठने वाजिब हैं । विभाग यदि नियम कानूनों को ताक पर रख कर वित्तीय अधिकार प्रदान करते हुए इन्हें सेवा विस्तार प्रदान करता है तो इस निर्णय को माननीय उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी । एक ओर विभाग शिक्षकों के फर्जी प्रमाण पत्रों की जाँच एसआईटी से वर्षों से करवा रहा है इसकी सराहना की जानी चाहिए लेकिन देश में विधि का शासन है और विभागीय अधिकारियों की सेवा पंजिकाओं व दस्तावेजों के सत्यापन के साथ – साथ विभाग के समस्त कार्मिकों के दस्तावेजों की एसआईटी जाँच होनी चाहिए इसे केवल शिक्षकों के दस्तावेजों की जांच तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए ।

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