शिक्षा विभाग का गजब का तमासा,बोर्ड परीक्षार्थियों को शिक्षक की जरूरत,लेकिन गेस्ट टीचर को नहीं मिल रही है जवाइंग

देहरादून। उत्तराखंड शिक्षा विभाग के भी अजब गजब के नखरे और अजग – गजब के का नियमों का हवाला रहता है। विभाग में यदि चहितों के लिए कोई मनचाही पोस्टिंग देना हो तो न नियम और न कानून दिखते है और न ही ये माईने रहते है कि विभाग कहींे कोई गलत काम तो नहीं कर रहा है। जिन शिक्षकों ने सालों की सेवा दुर्गम की है उनहे सुगम में आने का मौका मिलता नहीं है। लेकिन यदि किसी शिक्षक या शिक्षिका की राजनैतिक पहुंच है या फिर शिक्षा विभाग में किसी बडे पद पर आप निदेशालय में है तो फिर कोई न ऐसा नियम हैं न कोई कानून कि आपको को सुगम से दुर्गम में भेजा जाएं और दुर्गम वाले शिक्षक को सुगम में लाया जाए। देहरादून में ऐसे कई नेता और शिक्षा विभाग में बडे पदों पर बैठे तमाम अधिकारियों की पत्नियों के उदाहरणा है,जो सालों से सुगम का सुख भोग रहें है लेकिन मजाल क्या कि कोई उनके तबादले की बात भी करदें,ऐसे शिक्षिकाओं को तो प्रमोशन के बाद भी देहरादून में ही पोस्टिंग मिल जाती है। खैर ये बाते हम इसलिए कह रहें ताकि शिक्षा विभाग के उन अधिकारियों को अपने बारे में भी सोच लेना चाहिए जो इस दिनों गेस्ट को कुछ समझ ही नहीं रहें और वह भी उन गेस्ट टीचरों को जो 15 हजार रूपये में एक नियमित शिक्षक के बाराबर काम कर रहें। गेस्ट टीचरों को दर – दर भटकाना लगता है शिक्षा विभाग के अधिकारियों को मजा सा आता है। एक ऐसी ही गेस्ट टीचर की कहानी हम आपको बता रहे है जिसके लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों के पास इतने नियम और कानून आ गए है,कि लगता है कि 15 हजार रूपये की गेस्ट की नौकरी पाना अब उसके लिए बहुत मुश्किल सा हो गया है। जी हां हम बात कर रहे रसायन विज्ञान के पद पर देहरादून जनपद में प्रवक्ता के पद पर काम करने वाले रश्मि उनियाल की जिसकी नौकरी गेस्ट टीचर के रूप में प्रवक्ता पद पर हुई,लेकिन प्रवक्ता पदों पर प्रमोशन होने से रश्मि को शिक्षा विभाग ने घर बैठने को मजबूर कर दिया,खैर यह निमय के हिसाब से भी था,लेकिन उसके बाद से जब शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय ने प्रवक्ता पदों पर प्रमोशन की वजह से प्रभावित हुए गेस्ट टीचरों को रिक्त पद वाले स्कूल में नियुक्ति देने को कहा तो रश्मि को भी लगा कि अब उसे फिर से नौकरी मिल जाएगी। लेकिन रश्मि को नौकरी मिलना इतना आसान नहीं था। क्योंकि उसके आड़े शिक्षा विभाग के वह नियम कानून आ गए जिनके बारे में शायद ही कोई सोच सकता है कि एक गेस्ट टीचर शिक्षिका को महिला संर्वग के तहत बालिका इंटर काॅलेज में नौकरी नहीं मिल सकती है। दरअसल रश्मि की नियुक्ति सामान्य शाखा के तहत हुई लेकिन देहरादून जनपद के कई राजकीय इंटर बालिका स्कूलों में रसायन का पद खाली है,12 वीं की बोर्ड परिक्षार्थी अपने तैयारियों से पहले शिक्षिका का इंतजार कर रहें है। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी रश्मि को इस लिए बालिका इंटर काॅलेज में नियुक्ति नहीं देना चाहते है कि उसके पहले की नियुक्ति सामान्या शाखा में है। लेकिन ऐसे में सवाल ये बनाता है कि गेस्ट टीचरों की नियुक्ति नियमावली में क्या इस बात का प्रवाधान है कि यदि बच्चों को गेस्ट टीचरों की आवश्यकता है और वह महिला होने के बाद बालिका इंटर काॅलेज में नियुक्ति मांग रही है तो बच्चों की शिक्षा की चिंता न करते हुए, विभाग इस लिए बच्चों का भविष्य  बर्बाद होने देगा कि बालिका होने के बाद भी महिला शिक्षका को पढ़ाने की अनुमति बालिका स्कूल में नहीं देगा। चाहे छात्रा का कितना भी नुकसान पढ़ाई में क्यों न हुआ हो। ऐसेमें शिक्षा विभाग पर भी सवाल उठाता है कि जिस विभाग की जिम्मेदारी बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाने की है क्या उस विभाग का इतना फर्ज नहीं बनता है कि इस तरह का नियम भी बना दिया जाएं कि यदि किसी महिला शिक्षका को गेस्ट टीचर के रूप में नियुक्ति मांग रही है और पद खाली होने पर उसे सीधे बालिका स्कूल में नियुक्ति दे दी जाएं जिससे छात्रों का भी फायदा हो जाए। हांलाकि देहरादून की मुख्य शिक्षा अधिकारी आशा पैन्यूली से जब हमने इस बारे में बात की तो उन्होने कहा कि सामान्य शाखा में नियुक्ति की वजह से वह महीला शाखा में रश्मि को नियुक्ति नहीं दे पा रहीं है। अगर रश्मि अपना संर्वग बदलने के लिए आवेदन करें तो उन उनकी नियुक्ति प्रक्रिया को आगे के लिए बढ़ा देंगी। जबकि रश्मि का कहना है कि वह शिक्षा विभाग के कई अधिकारियों के चक्कर लगा चुकी है,लेकिन कोई उनकी सुनने को तैयार नहीं है। यहां तक कि उन्हे विभाग ने बीच में एक स्कूल में नियुक्ति दी थी,लेकिन जिस स्कूल में नियुक्ति दी गई,वहां के प्रधानाचार्य के पास स्कूल पहुंचने से पहले ही फोन आ जाता है कि उनके स्कूल में पद खाली नहीं,ऐसे में विभाग पर सवाल उठता है कि जब उन्हे स्कूल में नियुक्ति दी जा रही थी,तब क्या विभाग के पास जानकारी नहीं थी,उस स्कूल में पद खाली नहीं है। लेकिन इस खबर की शुरूवात में हमने चहिते शिक्षकों की मेहरगानी का जिक्र इसलिए किया क्योंकि उत्तराखंड में भी यदि गेस्ट टीचरों के राजनैतिक पहुंच होती तो गेस्ट टीचरों को इस कदर दर – दर न भटकाया जाता है। खैर शिक्षा विभाग के अधिकारी इस खबर को पढ़ेगे के बाद गेस्ट टीचरों के दर्द को भी समझेंगे और गेस्ट टीचर रश्मि को दर्द समझते हुए उसे ज्वाइंगि भी देंगे यह उम्मीद की जा सकती है। क्योंकि रश्मि को जिनती जरूरत नौकरी की है उससे ज्यादा जरूरत उन खाली स्कूलों में बच्चों की है जो बोर्ड परिक्षा के लिए बिना शिक्षक के तैयारी में जुटे हैं। 

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