उत्तराखंड में रिकॉर्ड शिक्षकों की भर्ती करने वाले पूर्व शिक्षा मंत्री का निधन,पढ़िए नरेंद्र भंडारी का पूरा राजनैतिक सफर

देहरादून। उत्तराखंड में कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व शिक्षामंत्री नरेंद्र सिंह भंडारी का हृदय गति रुकने से निधन हो गया। वह करीब 92 साल के थे। नरेंद्र भंडारी उत्तराखंड के एक मात्र ऐसे शिक्षा मंत्री रहे, जिनके कार्यकाल में शिक्षा विभाग में सर्वाधिक 56 हजार नियुक्तियां हुई थी। नरेंद्र भंडारी को वर्ष 1980 में हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस का टिकट दिलाया और वह पौड़ी विधानसभा से जीत गए। यहीं से वह चर्चा में आए। इस दौरान बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ी तो नरेंद्र भंडारी भी उत्तराखंड के उन चार विधायकों में थे, जो कांग्रेस छोड़कर बहुगुणाज के साथ रहे। उनके साथ शिवानंद नौटियाल, कुंवर सिंह नेगी, भारत सिंह रावत ने भी कांग्रेस छोड़ी थी। इसके बाद वे बहुगुणाज से उनकी मृत्यु तक जुड़े रहे।

जनता दल में हुए शामिल

वर्ष 1989 में नरेंद्र भंडारी जनता दल में शामिल हुए। विनोद बड़थ्वाल और सूर्यकांत धस्माना के प्रयासों से वे मुलायम सिंह यादव के नजदीक आए। वर्ष 1989 में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें जनता दल से पौड़ी विधानसभा चुनाव के लिए टिकट मिला। वह इस सीट से चुनाव जीत गए। इस दौरान वह पर्वतीय विकास परिषद के अध्यक्ष बने। इसके बाद समाजवादी पार्टी का गठन होने पर वह वर्ष 1991 में सपा के संस्थापक सदस्यों में एक रहे। वर्ष 1993 में वह सपा के टिकट से पौड़ी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। उस दौरान विनोद बड़थ्वाल की अध्यक्षता वाली उत्तराखंड राज्य निर्माण समिति के वह सदस्य रहे। साथ ही उन्होंने राज्य निर्माण को लेकर समिति की रिपोर्ट तैयार करने में अहम भूमिका निभाई।

राज्य आंदोलन के दौरान छोड़ दी सपा

नरेंद्र भंडारी ने वर्ष 1994 में राज्य आंदोलन के दौरान समाजवादी पार्टी छोड़ दी। वह कांग्रेस में चले गए। वर्ष 2002 में कांग्रेस के टिकट से वह उत्तराखंड में पौड़ी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत गए। एनडी तिवारी सरकार में वह शिक्षा मंत्री रहे। उन्होंने पूरे पांच साल तक शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि इन पांच सालों में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान दिया। उस दौरान उत्तराखंड में शिक्षा विभाग में सर्वाधिक करीब 56 हजार नियुक्तियां की गई। साथ ही उन्होंने उत्तराखंड में एनसीआरटी को लागू करवाया। वर्ष 2007 का चुनाव हारने के बाद उन्होंने चुनाव लड़ने से किनारा कर लिया।

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