भर्ती तो आई लेकिन टेंशन में युवा,कहां से लाए 1 साल का डिप्लोमा,जब सरकार ही नहीं देती मान्यता

देहरादून। सरकारी नौकरी पाने का सपना हर किसी युवा का होता है। लेकिन उत्तराखंड में कई युवाओं को सपना उत्तराखंड सरकार के उन नियमों से साकार नहीं हो पाता है। जो भर्ती के समय बेवजह मानकों के तहत अनिवार्य कर दिए जाते है। जी हां ये हम नहीं वो नियम कहते जिनकी वजह से कई युवा नियमों के फेर में उलझकर फाॅर्म ही नहीं भरते है,और कई भरते है तो पूरे मनोयोग के साथ नहीं भरते है। जिस वजह से वह पूरी मेहनत से तैयारी नहीं करते है। चलिए आपको बताते है कि वह कोन से नियम है जो युवाओं को दुविधाओं में भर्ती के समय डाले हुए है।

1 साल का डिप्लोमा युवाओं की बढ़ा रहा है टेंशन

उत्तराखंड में सेवा अधिनस्थ चयन आयोग के द्धारा वैयक्तिक सहायक या आशुलिपिक के पदों के लिए एक मानक ऐसा है, जो आयोग के लिए भी कई सालों से परेशानी का सबब बना हुआ है। वह है एक वर्षीय मान्यता प्राप्त संस्थान से कम्यूटर पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करने का हैै,जो उत्तराखंड सरकार के द्धारा तय किया गया है। लेकिन उत्तराखंड में इस समय उत्तराखंड सरकार के द्धारा किसी भी कम्यूटर संस्थान को सरकार से मान्यता प्राप्त है ही नहीं लेकिन सरकार के द्धारा ऐसा किया जा रहा है। ऐसे में सवाल ये उठात है कि जब उत्तराखंड में इस समय किसी भी युवाओं के पास शायद ही किसी संस्थान का 1 वर्षीय सरकारी संस्थान से मान्यता प्राप्त कोर्स का डिप्लोमा होगा तो फिर भर्ती के समय इसे क्यों लागू किया गया है। इस नियम की वजह से कई युवा तो इसे समझ ही नहीं पाते है,कि वह कोन से सरकारी संस्थान का मान्यता प्राप्त डिप्लोमा सरकार मांग रही है,जो विज्ञप्ती के समय जारी किया जाता है। और इसी उलझन की वजह से कई युवा सरकारी नौकरी के लिए आवदेन तक नहीं करते। सोमवार को भी सेवा अधिनस्थ चयन आयोग के द्धारा कई विभागों में वैयक्तिक सहायक या आशुलिपिक के पदों पर विज्ञाप्ती जारी की गई और उसमे भी युवाओं से एक वर्षीय सरकारी संस्थान से मान्यता प्राप्त कोर्स का डिप्लोमा मांगा गया है। जिससे युवा उलझन में है कि वह फाॅर्म भरे या नहीं।

आयोग ने नियम बदलने की सरकार से की है मांग

ऐसा नहीं है कि यह दिक्कत युवाओं के सामने पहली बार आ रही है,हर भर्ती में यही दिक्कत युवाओं के सामने आती है। लेकिन सेवा अधिनस्थ चयन आयोेग लिखित परीक्षा के बाद चयनित अभियार्थियों के सभी कागजातों की पड़ताल तो करना है,लेकिन कम्प्यूटर कोर्स की मान्यता का जिम्मा उस विभाग पर डाल देता है। जिस विभाग को पदों की जरूरत होती। यहां तक कि कई बार अड़चन आने के बाद कुछ मामले कोर्ट में भी है। इसी परेशानी को दूर करने को लेकर सेवा अधिनस्थ चयन आयोग के सचिव संतोष बड़ोनी ने सरकार को पत्र भेजकर इस नियम को नियमवाली में या तो बदलने की मांग की है या नियम को शिथिलीकरण करने की मांग की है।

सरकार पर भी है सवाल

सवाल इस बात का है कि आखिर सरकार इसे मामले की उलझन को दूर क्यों नहीं कर देते है जिससे युवा भी भ्रम की स्थिति में न रहें। सवाल इस बात का भी है कि जब उत्तराखंड में किसी भी कम्प्यूटर संस्थान के पास सरकारी के द्धारा सीधे मान्यता प्राप्त नहीं है तो फिर सरकार इस नियम को क्यों मानती है। युवा लम्बे समय से सरकार से मांग कर रहे है कि इस नियम को बदला जाएं लेकिन सरकार इसम मामले को समझ ही नहीं पा रही। उत्तराखंड सरकार में शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक से जब हमने इस परेशानी के बारे में सवाल किया तो मदन कौशिक ने कहा कि यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है। लेकिन अब उनके संज्ञान में ये मामला आया है तो वह इसको देखेंगे।

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