सरकारी स्कूलों में विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ना शिक्षकों के लिए बना सर दर्द,कई छात्रों के लिए भी खड़ी हो सकती है मुसीबतें

देहरादून। उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने की वजह से तीन वर्ष पूर्व एक आदेश हुआ था,जो अब कई शिक्षकों के लिए गले की फांस जैसे बन गया है,तो वही छात्रों के लिए इस आदेश के तहत पढाई करना भी किसी मुश्किल हालतों से सामना करने जैस है। लेकिन अभी तक शिक्षकों के समझ में ये नहीं आ रहा है कि वह इस आदेश का पालन करें या अवहेलना। दरसल 3 साल पहले शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया था,जिसके तहत कक्षा 1 से लेकर 12 वीं तक की पड़ाई एनसीईआरटी पुस्तकों के माध्यम से होने का निर्देश था,लेकिन इसी आदेश में एक महत्पूर्ण बात ये थी कि कक्षा 3 से और कक्षा 6 से छात्रों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ाया जाएं,जिसके तहत कक्षा 3 से और कक्षा 8 तक अब अंग्रेजी में विज्ञान विषय पढ़ाया जा रहा है। साथ ही कक्षा 9 से भी इस वर्ष विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ाया जाएगा। लेकिन कक्षा 9 से विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए कई शिक्षक पूरे मनोयोग से तैयार नहीं है,क्योंकि विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाने के लिए शिक्षक न पूरी तरह से तैयार है,ना ही इस को लेकर शिक्षकों को कोई प्रशिक्षण पहले दिया गया है कि कैसे वह फराटे दार अंग्रेजी में छात्रों को पढ़ाएंगे,जिससे शिक्षक संकोच भी महसूस कर रहें है। सबसे खास बात ये है कि कक्षा 9 के छात्र अगले साल जब10 वीं की बोर्ड परीक्षा देंगे और अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा देनी पड़ी तो रिजल्ट पर भी इसका असर पड़ा सकता है। जिससे शिक्षक घबराएं हुई है इससे उनके बोर्ड रिजल्ड पर भी असर पड़ सकता है।

प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी,छात्रों की राय जरूरी

वहीं इस बारे राजकीय शिक्षक संगठन के अध्यक्ष कमल किशोर डिमरी का कहना है कि छात्रों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ना है कि नहीं यह छात्रों पर छोड़ा जाना चाहिए,क्योकि इससे उन छात्रों को फायदा होगा जिनकी अंग्रेजी पर पकड़ मजबूत नहीं है,साथ ही वह सरकार से मांग करते है कि सभी स्कूलों में अंग्रेजी स्पीकिंग को लेकर छात्रों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। जिससे छात्रों की पकड अंग्रेजी भाषा में बोलचाल पर मजबूत हो सकें। जहां तक शिक्षकों का विषय है तो ज्यादा शिक्षकों को विज्ञान विषय में अंग्रेजी में पढाने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए,क्योकि विज्ञान विषय अंग्रेजी की शब्दों पर ज्यादा आधारित है लेकिन छात्रों को उनकी पंसद के हिसाब से हिंदी या अंग्रेजी में पढाया जाना चाहिए। 

 

निदेशालय पर भी उठ रहे है सवाल

राजकीय विद्यालयों में विगत वर्ष के विज्ञान को अंग्रेज़ी में पढ़ाने के अनुभव भी उत्साहवर्धक नहीं रहे । कई शिक्षकों का मानना है कि ना तो उन्हें और ना ही बच्चों को विज्ञान विषय अंग्रेज़ी में समझ आता है तो माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों के बिना प्रशिक्षण के विज्ञान विषय को सभी के लिए अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाना तर्कसंगत नहीं है । नवीन शिक्षा नीति तो पठन पाठन को क्षेत्रीय भाषा में संचालित करने की पैरवी करती है लेकिन यहाँ बच्चे तो बच्चे शिक्षकों को भी विज्ञान विषय अंग्रेज़ी में पढ़ाना नहीं आता है ऐसे में उत्तराखंड में शिक्षा के तीन निदेशालय विशेष रूप से प्रशिक्षण के लिए अलग निदेशालय केवल सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ बढ़ाने के लिए ही बनाया गया प्रतीत होता है । निदेशालय अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण विज्ञान को अंग्रेज़ी में संचालित करने के शासन के निर्णय को धरातल पर पहुँचाने के लिए किसी भी प्रकार की तैयारी नहीं कर सका और इस वर्ष तो शिक्षकों के प्रशिक्षणों हेतु केंद्र सरकार द्वारा कोई धनराशि भी नहीं दी जा रही है । ऐसे में विद्यार्थियों का भविष्य विज्ञान जैसे विषय में अंधकार में ही डूबता नज़र आ रहा है ।एक ओर अटल आदर्श विद्यालयों के लिए तो सरकार विशेष रूप से अंग्रेज़ी माध्यम में पठन पाठन कराने वाले शिक्षकों की ही नियुक्ति की बात कर रही है तो फिर अन्य विद्यालयों में विज्ञान को बिना किसी तैयारी के अंग्रेज़ी माध्यम से कैसे पढ़ाया जा सकता है ?

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